Category: General
दिल की ख़लिश
है सिर्फ इतना ही तो होता क्यूँ है
बेमुरव्वत बेवक़्त ही होता क्यूँ है
इश्क़ है सुना ख़ुदा की इबादात
फ़िर दर्द इसमें इतना होता क्यूँ है
ख़लिश सी उठीती है
अश्क़ों सी नदी बहती है
कोई तो बन जाता है अपना सा
फिर वो इस हाल में छोड़ जाता क्यूँ है
है सिर्फ़ इतना सा तो होता क्यूँ है
तूफ़ान सा उठता भी है
दर्द का दरिया बहता भी है
कोई तो ख़्वाब है अपना सा
फ़िर पतों सा भिखर जाता क्यूँ है
है सिर्फ़ इतना सा तो होता क्यूँ है
आह दिलोँ में होती भी है
अश्कों की बारिश होती भी है
कोई तो रहनुमा है अपना सा
फ़िर रक्स सा दिल में उतर जाता क्यूँ है
है सिर्फ़ इतना सा तो होता क्यूँ है
गुरूर
मैं खुद ही ख़ुदा हो जाऊं
है कैसा मुझ में ये गुरूर
ख़ुद का दुश्मन बन जाऊं
जहाँ को भी दफ़्न कर आऊँ
ये कैसा है बन गया इंसान
कौन सा ख़ुदा का दर्स
ना सोचा होगा उसने की इंसां
ऐसी भी कर लेगा शक़्ल दर्ज़
लहू का प्यासा हुआ क्यूं
क्यूं नफ़रत हैं जेहन में पाली
वो कौन सा है इबादत का क़ानून
जो जन्नत के बदले मांगे है लहू
कब पड़ लिया ऐसा कलमा
कौन दे गया ये फ़ज़ालिते
जो मेरा ही है हूबहू
मेरे ही हातों रंगा उसका लहू
मुझे फ़िर बना दे शीर खोवार
नहीं कबूल बनना वहशी दरिंदा
गुज़रा इश्क़
जहाँ तुमसे हो गई थी ख़तम
वो इश्क़ की दास्तां ज़ानिब
मैं अब भी उस राह का
मुसाफ़िर बन मंज़िल पे हूँ क़ायम
तो क्या अब इक तरफ़ा हो गया
मंज़िल का ये रास्ता
तौफ़ीक़ तो अब भी बरकरार है मेरी
तुझे गैरों से हस्ता हुआ देखा था
यहाँ तो ज़ख़्म जुदाई के अब भी हैं जवां
मैं कुछ रोज़ हो आता हूँ उन्न गलियारों से
जहां अब भी हँसी जवां मोहहबत है क़ायम
ये अब बात कुछ और है की तुम ग़ैर के क़रीब
और मैं एक तरफ़ा मोहब्बत में हूँ क़ायम
वक़्त अपने ही दिखाता है रौब
है इश्क़ गुज़रा ही सही हमारा तो क्या
जलाल आज भी मुझ से है क़ायम
ख़ुदा जिसे समझा वो पत्थर तो नहीं था
वस्ल की रात तो आज भी है क़ायम
गुमनाम लम्हें
समँदर की लहरों सा
उनका आना और जाना
रेत में हमारा नाम
यूँ मिट जाना
कुछ तो साज़िशें करता होगा
मुझसे ये ज़माना
लहरें छूने को तड़प उठीती होंगी
याद कर अजनबियों का फ़साना
रोज़ का वहीँ मिलना, रोज़ ही बिछड़ जाना
वो रेत पे निशाँ छोड़ते क़दम
लहरों का उन्हें बेवज़ह मिटा जाना
रोज़ उस मंज़र पे मोहहबत हो जाना
सहर होते बस यादोँ का रह जाना
अभी कुछ रोज़ पहले ही जवां थीं
ख़्वाहिशों का यूँ बेवक़्त दफ़न हो जाना
अब तो ढूंढ ही लिया है उन्न लम्हों ने
ज़हन में आना और रुख्सत हो जाना