है सिर्फ इतना ही तो होता क्यूँ है
बेमुरव्वत बेवक़्त ही होता क्यूँ है
इश्क़ है सुना ख़ुदा की इबादात
फ़िर दर्द इसमें इतना होता क्यूँ है
ख़लिश सी उठीती है
अश्क़ों सी नदी बहती है
कोई तो बन जाता है अपना सा
फिर वो इस हाल में छोड़ जाता क्यूँ है
है सिर्फ़ इतना सा तो होता क्यूँ है
तूफ़ान सा उठता भी है
दर्द का दरिया बहता भी है
कोई तो ख़्वाब है अपना सा
फ़िर पतों सा भिखर जाता क्यूँ है
है सिर्फ़ इतना सा तो होता क्यूँ है
आह दिलोँ में होती भी है
अश्कों की बारिश होती भी है
कोई तो रहनुमा है अपना सा
फ़िर रक्स सा दिल में उतर जाता क्यूँ है
है सिर्फ़ इतना सा तो होता क्यूँ है