समँदर की लहरों सा
उनका आना और जाना
रेत में हमारा नाम
यूँ मिट जाना
कुछ तो साज़िशें करता होगा
मुझसे ये ज़माना
लहरें छूने को तड़प उठीती होंगी
याद कर अजनबियों का फ़साना
रोज़ का वहीँ मिलना, रोज़ ही बिछड़ जाना
वो रेत पे निशाँ छोड़ते क़दम
लहरों का उन्हें बेवज़ह मिटा जाना
रोज़ उस मंज़र पे मोहहबत हो जाना
सहर होते बस यादोँ का रह जाना
अभी कुछ रोज़ पहले ही जवां थीं
ख़्वाहिशों का यूँ बेवक़्त दफ़न हो जाना
अब तो ढूंढ ही लिया है उन्न लम्हों ने
ज़हन में आना और रुख्सत हो जाना