रिश्तों के कुछ नाम हों
मेरे मोहहले के लिए ही सही
उन्न कुछ चुनिंदा लोगों के लिए
मेरी घुटन के कुछ नाम तो हों
है कौन वो जो मेरे होने का हक़
इतने हक़ से जताते हैं
गर उनके साथ नहीं तो
अजनबी सा चेहरा दिखा जातें हैं
मेरी साँसों को उनका कर्ज़ दिखा
रोज़ उधार सा कुछ मांग लेते हैं
ख़ुद उनका कुछ झुलस सा रहा
फ़िर मुझे ख़ाक करने का सबब क्या
कुछ दुआ सलाम के चलते
क्यों मेरा ज़ायका उनके ज़ायके सा हो
मुझे क्यूं उनके सा है जीना
जब मेरी मंज़िल का वो हिस्सा नहीं
है वो कौन जो मेरे जीने का दायरा तय करें
मुझे ख़ुदा ने नवाज़ा मेरे जीने का रास्ता
मुझसे ही तय औऱ मुझसे ही ख़त्म हो।