रख देता हूँ ख़यालो को अब ख़्वाबों में
देखें क्या हाथ में सहर होते होते
कभी ख़्वाब भी मुक़ामिल हुआ करते थे
अब तो ख़यालो से रह गुज़र होती है
वो जो कभी अपने हुआ करते थे
अब ख़यालो में भी भीड़ के तरह होते हैं
हम इशारे से गर बुला भी लें
ख़्वाबों में हाय तौबा होती है
ज़माने की उलझने भी कम होती नहीं
खयाल से भी ख्याल अब करते नही
दुनिया को खुश रखने को
ख़्वाबों में ही दोस्ती करते हैं
ये खयाल भी अपनी मंजिल ढूंढता हैं
कितना मासूम है ख़्वाबों मैं ज़िंदगी
रातों में बसर कर लिया करता है