अभी ज़िंदा हूँ
ज़िन्दगी का सफर कायम है
आवाज़ महसूस करता हूँ
चौराहें से जब गुज़रता हूँ
चेहरे की झुर्रियां पिचके गालों
कम खुलती पलकों से
डगर साथ चलने की देख लेता हूँ
ख़्वाबों की पोटली उम्र का तक़ाज़ा
दोनो साथ ही बढ़ते दिखता है
ना ख़्वाब ही रुकते हैं
ना उम्र ही रूकती है
साँसे कभी थमती है कभी अकस्मात दौर पड़ती
हाकिम की दवा भी असर देर से करती है
फिर भी
अभी में जिंदा हूँ
किताबों से दोस्ती
किताबों से मोहब्बत
यही ख़्वाबों के जैसे अब शिददत
गुज़रे पलों वही ढ़ूढ़ लेता हूँ
खुश होना कभी मायूसी सा
इन् एहसासों का आखमिलचोली खेलना
बंद सा है
फिर भी
अभी में ज़िंदा हूँ
बेहद खूबसूरती से लिखा है अपने—यही है जिंदगी।
जीवन है जिंदगी बिताना पड़ेगा,
जिंदा हु सबको दिखाना पड़ेगा,
हैं गम-खुशी मेरे दामन में सिमटे,
अपने भी है पर बुढापे में बिछड़े,
दवा के ही बल मुश्कुराना पड़ेगा,
जिंदा हु सबको दिखाना पड़ेगा।
LikeLike